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- लुप्त होती घट्टियों की परंपरा अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में जिंदा रखने की कोशिश में लगा राजस्थानी परिवार, प्रधानमंत्री से मिलने व हालात बताने की है इच्छा
कै लाश मुकाती
मनावर। नईदुनिया न्यूज
पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़, घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार। संत कबीर दासजी का यह दोहा जहा अंधविश्वास पर प्रहार करता है तो वहीं इसमें अनाज पिसने वाली चक्की (घट्टी) का भी महत्व प्रतिपादित कि या गया है। पहले पत्थर की लकड़ी के हत्थे लगी घट्टियां हर घर में रहती थी। लोग इनसे ही अन्न पीसते थे। समय के साथ यह विलुप्त हो गई व इनका स्थान बिजली से संचालित होने वाली मशीन ने ले लिया। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं-कहीं अब भी इनका प्रचलन जारी है।
नगर के सिंघाना रोड सीमा क्षेत्र से सटे एक मैदान में छन-छन की आवाज बरबस ही आने-जाने वालों का ध्यान आकर्षित कर रही थी। वहां करीब 20 महिला-पुरुष छेनी-हथौड़ी की सहायता से कु छ पत्थरों की गोल आकृतियों में काट रहे थे तो कु छ हथौड़ी की सहायता से घट्टियों पर टांके लगा रहे थे। इनमें से अधिकांश लोगों की उंगलियां जख्मी थी। बावजूद अपने सधे हुए हाथों से घट्टियां बनाने में लगे हुए हैं।
बड़ी मेहनत के बाद होती है 50 रुपए की कमाई
भागीरथ पिता नाथू व छगन पिता चंपा ने बताया कि 24 बड़े व 16 बच्चे इस दल में शामिल हैं। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भेरुखेड़ा ग्राम के निवासी होकर जोगीनाथ समाज के हैं। पीढ़ियों से पत्थर से घट्टी बनाने का कार्य करते आ रहे हैं। करीब 600 की जनसंख्या वाला पूरा ग्राम ही इस कार्य में लगा हुआ है। हम अलग-अलग दलों में अलग-अलग जगहों के लिए निकले हैं। क्षेत्र में हम गत एक माह से घट्टियां बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में बेच रहे हैं। घट्टी निर्माण के लिए मंदसौर क्षेत्र से पत्थर लाते हैं। एक पत्थर करीब 50 रुपए में आता है। इसमें तीन घट्टियों का निर्माण होता है। पहले छेनी-हथौड़ों से पत्थरों को गोल काटा जाता है। इसके दोनों हिस्सों में लकड़ी के हत्थों के लिए छेद कि ए जाते हैं। इसके बाद घंटों बैठकर इसे टांका जाता है। एक दिन में हम सभी मिलकर 15 से 20 घट्टियां बना लेते हैं। छेनी-हथौड़े से काम करने पर हाथ के पंजे व उंगलियों में घाव हो जाते हैं। ये घट्टियां 150 से 200 रुपए नग के हिसाब से बेची जाती है। एक घट्टी बेचने पर बमुश्किल 50 रुपए बचते हैं। इससे हमें पेटभर भोजन तक नसीब नहीं होता है। हमारे पास आधार कार्ड, वोटर आईडी सब कु छ है, लेकि न हमारी ओर राजस्थान सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। ना ही अब तक हमें कि सी सरकारी योजना का लाभ दिया गया है। बच्चे ठंड में खुले में सोते हैं। कि सी दिन खाना नहीं मिलने पर बच्चे भीख मांगकर ले आते हैं। घट्टी बनाने वाले कारीगरों ने बताया कि राजस्थान में खेती कम है, इसलिए उधर घट्टियां कोई नहीं लेता है। इसलिए मप्र व गुजरात में घट्टियां बेचने आते हैं। पैतृक ग्राम भेरुखेड़ा में बारिश के दिनों में मात्र 4 माह रहते हैं। वहां भी चोरों ने हमारे घर के सब बर्तन व सामान चुरा लिए। 60 वर्षीय इंद्राबाई की उंगलियां छेनी-हथौड़ी चलाकर जख्मी हो चुकी है। उंगलियों में पट्टी बांधकर वे छेनी-हथौड़ी चलाती दिखाई दी। बताया कि रुपए नहीं है, इसलिए जख्मों का इलाज नहीं कराया। तकलीफ होने पर उंगलियों पर तेल लगाकर पट्टी बांध लेते हैं।